लेखनी प्रतियोगिता - तलाश सुकून की।।
तलाश सुकून की
उलझे उलझे से रहते हैं हम,
सुबह से शाम तक,
नई नई मुश्किलों से जूझते रहते हैं हम,
छोड़ के आराम सब,
ना जाने, किस कोने में छुपा बैठा है,
मेरी जिंदगी का सुकून सारा
क्या पता, कब कहां और कैसे मिलेगा
नही जानता ये दिल बेचारा,
कितना खुद को छुड़ाने की कोशिश करते हैं,
मगर धीरे धीरे और उलझते जाते हैं,
रोज़ का दिन यूं ही बीत जाता है, पर
जिंदगी के काम खत्म होने में कहां आते है,
ये करना बाकी है,
वो काम अब छूट गया,
बस इसी चिंता में,
आज का दिन भी गुजर गया,
नहीं मिला कोई पल ऐसा,
जहां खुद से खुद की बात करूं,
कोई बताए मुझे, कैसे अब मैं,
फुरसत के पलों को जीना करूं शुरू।।
प्रियंका वर्मा
24/8/23
Abhilasha Deshpande
25-Aug-2023 10:28 AM
Nice
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Reena yadav
24-Aug-2023 06:16 PM
👍👍
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